कितनी सारी चीजों की जरूरतों से
दिमाग अनजान रहता है…..
होती हैं वो चीजें हमारे लिये उपयोगी
लेकिन दिमाग अनुपयोगी बताता है……
सामान की उठापटक के दौरान
अचानक से मिल गयी एक थैली…
दिख रही थी मैली….
थैली के अंदर थी कुछ कीलें….
जंग मे लिपटी हुई….
थैली मे सिमटी हुई…..
काले रंग के ऊपर मटमैले भूरे रंग
को ओढ़े हुई…..
ज़रा सी हिकारत वाली नज़र उनकी तरफ घूमी…..
लेकिन दीवाल पर हिलती हुई तस्वीरों को टाँगने
के लिए उन कीलों की जरूरत
जोर से बोली…..
हमारे चेहरे के भावों को देखकर
उन कीलों ने हमारी तरफ मुस्कान
के साथ देखा…..
सधे हुए शब्दों मे अपने लफ्ज़ों को खोला….
ज़रा ध्यान से देखिये दीवाल पर लटकी हुई चीजों को….
बस थोड़ी ही देर मे नीचे गिरती हुई तस्वीरों को…..
हमारी उपयोगिता दिख जायेगी….
आपके माथे की सलवटें और सिकुड़ी हुई नाक
अपनी पहले वाली स्थिति मे वापस आ जायेंगी…..
मै सोचने लगी,अपने घर के अलावा चारो तरफ देखने लगी…..
बनती हुई इमारत से लेकर चारो तरफ बदसूरत सा लोहा दिखा…
कहीं सरिया,कहीं मोटर तो कहीं कबाड़ के रूप मे दिखा…..
उसको देखने पर बाहरी सुंदरता कहीं से भी नही नज़र रही थी…..
लेकिन बनती हुई इमारत हो या चलती हुई मोटर
सभी इसी बदसूरती के दम पर इठला रहीं थी……
दिमाग ने अपनी उपयोगिता दिखाया….
सोच विचार के दायरे को चार कदम आगे बढ़ाया….
सबसे पहले दिमाग मे सुई डोली…
दिख रही थी बड़ी भोली…..
हँसते हुए मुझसे बोली….
सारे परिधान हमारे कारण ही तैयार होते हैं……
लेकिन हम सिल्क और सूती मे फर्क नही करते हैं……
सिल्क हो या खादी,सूती हो या जरी
बिना हमसे गले मिले,किसी को भी
नही मिलता है,उनका रूप…..
और आप समझती हैं हमे कुरूप….
अब ज्यादा इधर उधर मत देखिये….
अभी आप की ऊँगली मे चुभ जायेंगे….
फालतू मे आपकी आँखों को आँसूओं से भर जायेंगे….
कल्पना मे ही सुई के चुभने के बाद, निकलने वाले
रक्त की तरफ नज़र फिर गयी….
वहाँ पर भी लोहे की, उपयोगिता दिख गई….
खून मे होने वाली आयरन की कमी भी, कितना कष्ट देती है…..
अच्छे खासे शरीर को भी, अशक्त कर देती है….
लोहे की उपयोगिता, समझ मे आ गयी….
लेकिन बड़े प्यार से,एक बात समझा गयी….
अगर किसी कोने मे,बिना उपयोग के रख दिया तो
जंग लग जाता है…..
रखे रखे ही लोहा, अपना अस्तित्व खोता जाता है…..
लाल भूरे रंग के जंग,और मिट्टी मे लिपटा हुआ
नज़र आता है…..
( समस्त चित्र internet के द्वारा )