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PODCAST-जंगल का साथ बहुत सारी बात

by 2974shikhat October 13, 2017
by 2974shikhat October 13, 2017

मेरी इस कविता को मेरी आवाज मे सुनने के लिए आपलोग इस लिंक पर क्लिक कर सकते हैं।

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नींद की गहराई मे हरा भरा
सघन सा जंगल दिखा…..

बड़े बड़े हरे पेड़ों की
छाँव से भरा दिखा…

सर्पीले से रास्ते थे….
चलने के वास्ते थे….

सागौन ,शीशम , साल के अलावा
अनेक प्रकार की बेलों और जंगली
वनस्पतियों से सजा था….

दिख रहे थे चारो तरफ
अनेक प्रकार के जीव जंतु…

कुछ तो दिख रहे थे स्वभाव से शांत
तो कुछ दिख रहे थे बड़े उग्र…..

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जंगल के बीच मे से गुजर
रही थी, शांत और शीतल नदी…

अपने जल से सींच रही थी
जंगल की जमीन…

नदी के ऊपर झुकी पेड़ों की
शाखायें दिखी….

ऐसा लग रहा था नदी के
सम्मान मे झुकी….

वृक्ष की बातों को मै कान लगाकर
सुन रही थी…..
सुनते हुये समझने की कोशिश करते
हुये गुन रही थी…

वृक्ष ने मुस्कुराते हुए नदी से कहा
अपने बहाव के सफर मे अनेक
व्यवधानों को पार किया है….

बहती हो रेतीली पथरीली ज़मीन पर भी…..
सींचती हो कटीली वनस्पतियों को भी…
फिर भी लेती क्यों प्रतिशोध नही….
तुम्हें क्या इस बात का अफसोस नही…

उत्तर मे नदी ज़रा सा मुस्कुरा गयी….
मिट्टी की पकड़ और जड़ की मजबूती की बात सिखा गयी..

एक बार फिर से शांत हो गयी
वृक्ष की बातों को सुनने मे ध्यानमग्न हो गयी

वैसे पता है हमे जब उफान लाती हो तो
हमारे जैसे बड़े बड़े वृक्षों को भी बहा ले जाती हो…..

लेकिन मानना पड़ेगा तुम्हें हम वृक्षों का एहसान भी
तुम्हारे तीव्र क्रोध को हम भी सहते हैं….
तुम्हारे तेज प्रवाह को रोकने की कोशिश मे
हम भी गिरते और सँभलते हैं……

बस इसीलिये मुस्कुरा रहे हैं…..
तुम्हारे सम्मान मे अपने सिर को झुका रहे हैं…

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अचानक से देखा एक अजगर वृक्ष से लटका हुआ था…
ऐसा लगा मानव शरीर से दर्प चिपका हुआ था….

पेड़ पर लटके लटके ही शाखाओं को जकड़े हुए था….
ऐसा लग रहा था अपनी ताकत की जोर आजमाइश
मे लगा हुआ था….

देख कर उसे मुझे ज़रा सी हँसी आ गयी…..
लेकिन उस हँसी को मै मन मे ही दबा गयी…..

पता नही था उसे जिस शाखा पर लटका था…
उसी को निगलने की कोशिश मे आँखें बंद कर के
तन्मयता के साथ जुटा था…

जंगल का वातावरण भी बड़ा रहस्यमयी होता है….
भीड़ के साथ भी जंगल मे इंसान अकेला खड़ा होता है….

अचानक से आँखें खुल गयी….
जंगल से बाहर निकलकर
वास्तविकता से आँखें मिल गयी….

व्यक्ति का दर्प भी तो अजगर ही होता है…..
अपने दर्प को इंसान गर्व के साथ अपनाता है…
हमेशा उसी दर्प को अपने चारो तरफ लिपटा हुआ पाता है…

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( समस्त चित्र internet के द्वारा )

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Mayur October 13, 2017 - 2:03 pm

Bahot hi sundar kavita aur Natural picture.

Mrs. Vachaal October 13, 2017 - 3:59 pm

प्रशंसा के लिए धन्यवाद 😊

Bharati singh October 20, 2017 - 7:27 pm

“जंगल का साथ……..”पढ़ कर ऐसा लगा जैसे कविता के साथ हम भी जंगल की सैर करके लौटे हैं।

Mrs. Vachaal October 21, 2017 - 3:06 am

चलो अच्छा है मैने अपनी कविता के साथ तुम्हें जंगल की सैर करा दी😊…वैसे सच बताऊँ तो वास्तविकता मे मैने अपने सपने को शब्दों के माध्यम से कविता मे उतारा है.. तूने पहली बार मेरी पोस्ट पढ़कर अपनी बात लिखी उसके लिए धन्यवाद 😊

Manisha Kumari October 22, 2017 - 11:06 am

कितना मनोहर रहा होगा ऐसे किसी सपने में खोना।

Mrs. Vachaal October 22, 2017 - 11:46 am

इस तरह के सपने मे खोते हुए, सोते समय मुझे अपनी पोस्ट को लिखने के लिए शब्द मिल गये ,वो मेरे लिए ज्यादा मनोहर था😊..पढ़ने के लिए धन्यवाद

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कहानी का दूसरा पहलू मेरी दुनिया में आपका स्वागत है

मेरे विचार, और कल्पनाएं… जीवन की छोटी-छोटी बातें या चीजें, जिनमे सामान्यतौर पर कुछ तो लिखने के लिये छुपा रहता है… एक लेखक की नज़र से देखो तब नज़र आता है … उस समय हमारी कलम बोलती है… कोरे कागज पर सरपट दौड़ती है.. कभी प्रकृति, कभी सकारात्मकता, कभी प्रार्थना तो कभी यात्रा… कहीं बातें करते हुये रसोई के सामान, कहीं सुदूर स्थित दर्शनीय स्थान…

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