पानी की नन्ही सी बूँद प्यारी सी….
“नाज नखरे “की मारी सी….
आकार मे ज़रा सी “गोल मटोल”
दिखती है ….
गिरती है अगर ऊँचाई से…
पानी से भरे हुए किसी बर्तन मे…
“जल तरंग” की मीठी सी आवाज
निकालती है….
आँखों से टपकी यही पानी की बूँद
तो “आँसू”कहलाती है……
मन के भावों के साथ हमेशा
आँखों से “छलक” जाती है…..
बारिश की बूँद बन कर गिरती है तो
बड़े बड़े “जल स्रोतों”को भर जाती है…..
अनगिनत संख्या मे गिरते समय….
तीव्र ध्वनि के साथ आवाजें
निकालती है……
पता नहीं क्यूँ हमेशा ही मुझे
बारिश की बूँदें “चुगली” करती हुई
नज़र आती है…..
बाहर हो रही बारिश से अनजान
व्यक्ति को भी अपनी आवाज
सुना जाती है…..
तेजी से होती हुई बरसात मे
सारे “जहान” को भिगो जाती है….
ऐसा लगता है कर रही हो
कुछ मीठी मीठी सी बातें…..
कर रही हो बादलों की
ढेर सारी “शिकायतें”….
गिरती है अगर खाली बर्तन मे
एक एक बूँद से ही बर्तन को
भरती जाती है….
गिरती है अगर “वनस्पतियों” के ऊपर….
ठहरती है अगर पत्तियों के ऊपर….
मोती सी नजर आती है….
हवा चलने पर “हया”को ओढ़ लेती है….
पत्तियों के ऊपर ही “हिलती डुलती” सी
नजर आती है…
सूरज की “तीव्र” किरणों के पड़ते ही
“अद्भुत चमक”से भर जाती है…..
नन्ही सी बूँद मे ही “इन्द्रधनुष” के
तमाम रंग नजर आते हैं….
ये “इन्द्रधनुष”भी नन्ही सी बूँद के भीतर
पता नही कैसे छुप जाते हैं?
उधर आकाश मे देखो तो
पानी की बूँदों के कारण ही
“वृहत”रूप मे नजर आते हैं….
रास्तों पर बहता हुआ पानी
हमेशा व्यर्थ चला जाता है….
नन्ही सी पानी की बूँद को ध्यान से देखो तो
शब्दों का “पिटारा” अपनेआप ही खुल जाता है….