कभी सोचो तो सच में विविधताओं के साथ रोमांच, सांस्कृतिक धरोहरों, पौराणिक कहानियों के साथ हमारा देश मनोहर लगता है…..
कई कस्बे और शहर तो ऐसे हैं, जिनके नाम जेहन में आते ही, इंसान उन जगहों से पौराणिक कहानियों के माध्यम से खुद-ब-खुद जुड़ने लगता है…..
ऐसी ही जगहों में से एक जगह है, भगवान राम के वनवास के समय का आश्रय स्थल “चित्रकूट”…..
प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर, मंदाकिनी नदी के किनारे स्थित प्राचीन तीर्थ स्थलों में से एक है…..
इस जगह को देखकर ऐसा लगता है कि यह प्रकृति और ईश्वर की अनुपम कृति है….
कल कल करते हुए बहते हुए झरने,घने जंगल,पंक्षियों का कलरव,बहती नदियां विंध्य पर्वत
की श्रृंखलाओं से घिरे हुए इस जगह पर देखने को मिलेंगी…..
“चित्रकूट”नाम के बारे में अलग-अलग विचार सुनने और पढ़ने को मिलते हैं…..
अनेक रंग की धातुयें इस पहाड़ पर पाये जाने के कारण इस पहाड़ को चित्रकूट कहते हैं…..
दूसरी तरफ चित्रकूट शब्द को तोड़ कर उसका अर्थ निकालते हैं…
चित्र का मतलब संस्कृत भाषा में अशोक और कूट का मतलब शिखर या चोटी…..
इस संबंध में जनश्रुति यह है कि अशोक के वृक्ष इस वनक्षेत्र में बहुतायत से मिलते थे इस लिए
इसका नाम चित्रकूट पड़ा…..
आज भी चित्रकूट की भूमि पर भगवान राम,लक्ष्मण और सीता के चरणों को महसूस किया जा सकता है…..
दुर्गम पर्वतीय और जंगली इलाका होने के कारण विदेशी आक्रमणकारियों की नज़रों से भी बचा रहा….
तुलसीदास जी ने अपनी अधिकांश रचनाओं, कवितावली, दोहावली, विनय-पत्रिका और राम चरित मानस में चित्रकूट की महिमा का गुणगान किया है….
लोकश्रुतियों के अनुसार तुलसीदास जी को आराध्य के दर्शन चित्रकूट में ही हुए थे…
आराध्य भगवान राम और लक्ष्मण को उन्होंने तिलक भी लगाया था….
“चित्रकूट के घाट पै भयी संतन के भीर
तुलसीदास चंदन घिसै तिलक देते रघुवीर”
महाभारत में चित्रकूट और मंदाकिनी का तीर्थ के रूप में वर्णन किया गया है….
महाकवि कालिदास ने रघुवंश महाकाव्य में चित्रकूट के बारे में बताया है…
श्रीमद्भभगवत गीता में भी चित्रकूट का वर्णन मिलता है…..
बौद्ध ग्रंथ ललित विस्तर में भी चित्रकूट की पहाड़ी का उल्लेख मिलता है…
धार्मिक, आध्यात्मिक और प्राकृतिक सुंदरता के कारण पर्यटन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण जगह है…..
इसका कुछ भाग मध्यप्रदेश और कुछ भाग उत्तर प्रदेश में होने के कारण यहां पर घूमते समय पर्यटक दोनों प्रदेशों की सीमा के अंदर और बाहर होते रहते हैं…..
यहां पर अनेक जगहें देखने लायक हैं…
कामदगिरि धार्मिक महत्व वाला पर्वत है। पांच किलोमीटर की परिक्रमा कर श्रृद्धालु अपनी मनोकामना पूरी करते हैं…..
कामतानाथ और भरत मिलाप मंदिर भी यहां पर स्थित है….
जानकी कुंड के अलावा राम जानकी रघुवीर मंदिर और संकट मोचन मंदिर भी देखने योग्य है….
स्फटिक शिला से राम और सीता जी चित्रकूट की सुंदरता को निहारते थे….
गुप्त गोदावरी धार्मिक आस्था के साथ साथ रोमांच पैदा करती है …. नगर से अट्ठारह किलोमीटर की दूरी पर स्थित है…..इसके अंदर प्रवेश करने पर साफ सुथरे पानी की शीतलता के साथ गुफा की दूरी को तय करते हैं…
इस गुफा के अंत में एक छोटा सा तालाब है…
कहा जाता है कि इस गुफा के अंत में राम और लक्ष्मण ने अपना दरबार लगाया था…
हनुमान धारा में हनुमान जी की विशालकाय मूर्ति है…..मूर्त्ति के सामने तालाब में झरने से पानी गिरता दिखता है…..
कहा जाता है कि, यह धारा श्री राम ने लंका दहन से वापस आये हनुमान जी के आराम के लिए बनवाई थी…..
महासती अनुसूया और महर्षि अत्रि के तप का पवित्र स्थान अनुसूया आश्रम के नाम से जाना जाता है….
इस आश्रम में अत्रि मुनि , अनुसूया, दत्तात्रेय और दुर्वासा मुनि की प्रतिमा स्थापित है…..
माना जाता है कि यह वही आश्रम है,जहां सती अनुसूया ने अपने सतीत्व की परिक्षा के लिए आये ब्रहम्मा, विष्णु और महेश को अपने तप के प्रभाव से बाल रूप में परिवर्तित कर दिया था…
रामचन्द्र जी के वनवास के बाद महाभारत काल में पाण्डव चित्रकूट में रहे थे….उसके बाद महाराजा हर्ष के समय का इतिहास चित्रकूट के बारे में बताता है……
उसके बाद बुंदलो का प्रभाव चित्रकूट के नवीनीकरण में दिखता है…..
प्रागैतिहासिक काल की गुफायें, मुगलिया सल्तनत के दौरान शहंशाह अकबर के दरबार के नौ रत्नों में से प्रमुख संगीत सम्राट तानसेन का संबंध भी चित्रकूट से रहा है…..
भक्ति काल के प्रमुख कवि अब्दुल रहीम खानखाना ने तो अपने बुरे समय में यहां आकर भाड़
भूजने का काम भी किया…..
उनके लिखे दोहे….
” चित्रकूट में रम रहे, रहिमन अवध नरेश
जापर विपदा परत है,सो आवत यहि देश”
चित्रकूट के सफर में निकले हुए यात्रियों को यह जगह प्राकृतिक सुंदरता, आध्यात्म,आस्था इन तीनों चीजों का दर्शन करा देती है…
(सभी चित्र इन्टरनेट से)