(चित्र pixabay से )
बात किसी भी धर्म की करिये ,वहाँ पर व्यक्ति का विश्वास उसे आस्था और भक्ति से जोड़ देता है।
हमारा मतलब अंधविश्वास से कदापि नही है।
आस्था और भक्ति ! विश्वास के साथ मिलकर ,तब तक प्रभावी नही होती है,जब तक सकारात्मक कर्म का साथ नही होता।
बात अगर हिंदू धर्म की करिये तो, विभिन्न प्रकार के जीव और वनस्पति भी हमे धर्म के साथ जुड़े दिखते हैं।
कहने का सीधा मतलब यह है कि, हमारी सभ्यता और संस्कृति, वेद,पुराण, महाकाव्य प्रकृति को अपने अंदर संजोये हुए से लगते हैं ।
(चित्र pixabay से )
आराधना की तरफ मुड़ते हैं तो ,बजरंगबली का और पवन का गहरा साथ।
दिन की रोशनी रथ पर सवार सूर्य भगवान की जिम्मेदारी ।
मेघों ने अतिवृष्टि की तो, सिर्फ और सिर्फ इंद्र भगवान जिम्मेदार ।
अगर बरसात नही हो रही है तो,इंद्र भगवान को खुश करने के चहुंओर से प्रयास ।
अग्नि देवता माध्यम बन जाते हैं, हवन के समय आहुति को, हर भगवान के पास पहुंचाने के ।
दूसरी तरफ मानव समाज की ,पेटपूजा का भी माध्यम बनते हैं ।
(चित्र pixabay से )
बुद्धि विवेक की बात करिये तो, गणेश भगवान का आशीर्वाद ।
वाणी और शब्दों के खेल मे माँ शारदा का साथ ।
लक्ष्मी जी खुश हुई तो धन संपदा अथाह,अगर रूठी तो जीवन मे संघर्षों की बात ।
बाबा भोलेनाथ का सिर पर हाथ तो, जीवन के थपेड़ों और उलझनों मे भी आत्मविश्वास का साथ ।
कान्हा जी तो ऐसे कि सामान्य मानव के जीवन से ही जुड़े नज़र आते हैं ।
कहीं गायों को चराते ,माखन खाते,कहीं सुर्दशन चक्र घुमाते हुए नज़र आते हैं ।
पेड़ पौधे, जीव जंतु,कीड़े मकोड़े हर जीवन, मनुष्य एवम् पर्यावरण से जुड़ा हुआ दिखता है ।
ध्यान से देखिये अगर हमारे देश के कुछ प्रदेशों को तो, ‘पर्यावरण संरक्षण’ की बात वहां पर सिर्फ बैनर और पोस्टर तक सीमित नही दिखती।
(चित्र दैनिक जागरण से )
समाज मे रहने वाले लोगों की आस्था और विश्वास ! पूजा पाठ से जुड़ी होती है ।
इसी तरह का लेख समाचार पत्र के माध्यम से पढ़ रही थी।
देश की राजधानी मे रहते हुए अन्य लोगों की तरह ही, गर्मी और उमस से परेशान होकर आकाश मे गुमशुदा मानसून के मेघों का इंतजार कर रही थी।
बहुत प्रासंगिक सी लगती है यह बात,मौसम ने अगर नही की अनुकूल सी बात,तब जोरशोर से हल्ला मचता है ।
चारो तरफ पर्यावरण संरक्षण की बात को लेकर शोर मचता है।
आकाश की तरफ नज़रों को फेरो तो, काले मेघ गुमशुदा नज़र आते हैं ।
शरीर से झरझर कर बहता हुआ पसीना, हर किसी को पर्यावरण संरक्षण की बात बता जाता है
गांव परिवार और समाज मे सुनी थी हमने भी, गोत्र की बात ।
पहली बार समाचार मे पढ़ा, गोत्र और पर्यावरण का साथ ।
छत्तीसगढ मे बस्तर के आदिवासी समाज और, जशपुर के उरांव जाति के लोग सदियों से एक परंपरा निभा रहे हैं।
गोत्र को पेड़ों व पशु-पक्षियों का नाम देकर, पर्यावरण संरक्षण का महत्वपूर्ण कार्य करते जा रहे हैं।
यही कारण है कि छत्तीसगढ के आदिवासी इलाके, हरियाली से भरपूर नज़र आते हैं।
विकास के इस दौर मे जहाँ तक महानगरों की करें बात तो, ‘लोकसंस्कृति‘ के जरिये ‘जैवविविधता‘ की बात अब पीछे छूटती हुई नज़र आती है ।
फिलहाल हमारा प्रबुद्ध समाज, पर्यावरण संरक्षण की बात करने मे जुटा है।
पेड़ पौधों की बलि विकास के नाम पर आज भी दी जा रही है।
‘जलस्रोत’ अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष करते नज़र आ रहे हैं ।
( चित्र दैनिक जागरण से )
विचारक,लेखक,कार्टूनिस्ट अपनी रचनाओं के माध्यम से लोगों को जागरूक करने के प्रयास मे जुटे हुए हैं ।
‘पर्यावरण संरक्षण’ की बात के साथ गुमशुदा मानसून की तलाश मे दिल्ली एन सी आर का हर व्यक्ति जुटा सा नज़र आता है।
दिन के किसी भी पहर मे, काले स्लेटी घने मोटे मोटे बादलों की तहों को,आकाश मे खोजता हुआ समझ मे आता है।