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कागज़ का इतिहास, और दैनिक जीवन का साथ

by 2974shikhat April 23, 2018
by 2974shikhat April 23, 2018

Paper

दिमाग ने सोचा आज कागजों को

कलम की सहायता से रंग दूं….

कोरे कागज पर ज्यादा कुछ नहीं

बात कागज की ही लिख दूं….

देख कर मेरी ये सनक कागज भी हंस पड़ा….

पंखे की हवा में घर के भीतर ही उड़ चला….

बोला कागज़ पर कागज़ की बात लिखने का

ख्याल तो उम्दा है…..

चलिये अपने इतिहास और सफर की बातों को

आपके लेखन के माध्यम से पढ़ लूंगा…..

कागज पर लिखे शब्दों को पढ़ कर खुद को

गौरवान्वित कर लूंगा….

Paper

सुबह का अखबार हो या बारिश के पानी में

बहती हुई कागज की नाव हो…..

स्कूल कालेज का ज्ञान हो या

न्यायलयों का फरमान हो….

ईश्वर की आराधना का माध्यम हो या, धर्म पुराण हो…..

हर जगह कागज़ का साथ होता है…..

वर्तमान में कागज की सहायता के बिना हर किसी का

जीवन मुश्किल सा लगता है….

कागज़ का ही रूप रुपए के रूप में

कपड़ों की जेब या पर्स के भीतर सुरक्षित रखा होता है…

रोज़ होता है हमारा भी कागज़ से आमना-सामना…..

उद्देश्य होता है विचारों को कविता या कहानी के माध्यम से

कागज पर उतारना….

Paper

आधुनिक तकनीकी के साथ लैपटॉप मोबाइल और टैबलेट

दिखते हैं….

अपने साथ साथ ये कागजों को भी रखते हैं….

घरों को सजाना हो तो कागज़ की झालरें लगा लो…..

भौतिक सुख सुविधाओं को अपनाना है तो

कागज के रूपये से सामान खरीद लाओ….

Paper

घर की दैनिक जरूरतों के साथ कागज़ जुड़ गया….

ध्यान से सुनने पर ढेर सारी बातें कह गया….

वैदिक सिद्धांत के अनुसार परमेश्वर की इच्छा से ब्रहम्मांड की रचना, और जीवों की उत्पत्ति हुई..

इसके बाद ध्वनि प्रकट हुई….

भारतीय ऋषि मुनियों ने सुनने की क्रिया को श्रुति और समझने की क्रिया को स्मृति नाम दिया…

और वेदों की ऋचाओं को सुनकर कंठस्थ किया…

ज्ञान को लंबी दूरी तक फैलाने और बढ़ाने के लिए यह माध्यम पर्याप्त नहीं था…

आवश्यकता ही आविष्कार की जननी होती है ,यह बात यहां सही लगती है…

इसी कारण से लिपि का अविष्कार किया गया…

मनुष्य तब पत्थरों व वृक्षों की छालों को खुरचकर ही लिखने लगा….

इसके बाद ताम्रपत्रों और भोजपत्रों पर लिखने की शुरुआत हुई…

भारत में कागजों का उपयोग प्राचीन काल में नहीं किया जाता था…

लिखने के लिए भोजपत्रों को ही उपयोग में लाया जाता था….

Currency

व्यापार के समय धातु की मुद्राओं से धन का आदान प्रदान होता था…

मानव सभ्यता के विकास में कागज़ का बहुत बड़ा योगदान है….

गीले फाइबर्स को दबाकर एवं उसके बाद सुखाकर कागज़ बनाया जाता है….

ये फाइबर्स सेलुलोस की लुगदी होते हैं,जो लकड़ी, घांस,बांस या कपड़ों के चिथड़ों से बनाये

जाते हैं…

कपड़ों के चिथड़ों और कागज़ की रद्दी में लगभग शत-प्रतिशत सेलुलोस होता है…..

इसलिए इनसे कागज़ सरलता से और अच्छा बनता है….

Paper

संभवतः चीन से कागज़ का प्रचार प्रसार सारे विश्व में हुआ….

चीन में कागज़ ईसा की आरंभिक सदियों में उपलब्ध हुआ….

इतिहास के पन्नों के अनुसार ,चीनी कागज़ निर्माताओं के माध्यम से ,शक्ति के जरिए ही इस्लामी जगत को कागज़ निर्माण कला की जानकारी मिली….

ईसा की बारहवीं सदी में कागज़ कला के यूरोप में पहुंचने तक,अरब लोगों का कागज़ निर्माण पर एकाधिकार बना हुआ था….

भारत में कागज का प्रवेश संभवतः ईसा की सातवीं सदी में हुआ….

भारतीय लिपियों गुप्त कालीन ब्राम्ही में,कागज़ पर हाथ की लिखी हुई पुस्तकें, मध्य एशिया के बौद्ध स्तूपों में मिलती है…..

भारत में ग्यारहवीं सदी तक कागज़ का व्यापक उपयोग नही हुआ था…..

कागज़ का प्राचीन उल्लेख धार नगरी के राजा भोज का है….

भारत में उपलब्ध कागज़ पर लिखी सबसे प्राचीन संस्कृत पुस्तक “पंचरक्ष”है…

मजबूती और टिकाऊ पन कागज़ की मुख्य विशेषताएं होती थी….

पठानों और मुगलों के समय कश्मीरी कागज़ की बड़ी मांग थी…

Paper

लिखने की सामग्री के रूप में कागज़ की मांग बढ़ते ही, हमारे देश में भी बहुत सारे शहर कागज़ निर्माण से जुड़ते गए….

कागज़ के प्रकार के नाम जिस से वह बनता था, उसके आधार पर जैसे बांस से ‘बस’

सन से ‘सन्नी’, मछुआरों के जाल से ‘महाजाल’….

उस स्थान के नाम पर जहां से बनता था पाटन से पाटनी, कश्मीर से कश्मीरी…

जिसकी छत्रछाया में बनता था निजाम से निजामशाही,मानसिंह से मानसिंही….

मुगलकाल में दौलताबाद शहर भारत में कागज़ निर्माण का एक प्रमुख केंद्र बन गया…

दौलताबाद से कुछ दूरी पर ‘कागजीपुरा’नामक एक गांव आज भी मौजूद है..

बड़ा लंबा चौड़ा सफर और इतिहास कागज़ का, इतिहास के पन्नों पर दिखता है…

बड़ी मुश्किल से शब्दों के साथ सिमटता है….

Paper

हवा के साथ उड़ते हुए कागज़ के टुकड़े भी, कागज़ के बारे में जानने के बाद अनमोल लगते और दिखते हैं… और कागज़ की बरबादी के बारे में गहराई से सोचने पर मजबूर करते हैं…..

(सभी चित्र इन्टरनेट से)

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Manisha Kumari April 23, 2018 - 7:26 am

ज्ञानवर्धन के लिए धन्यवाद।

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कहानी का दूसरा पहलू मेरी दुनिया में आपका स्वागत है

मेरे विचार, और कल्पनाएं… जीवन की छोटी-छोटी बातें या चीजें, जिनमे सामान्यतौर पर कुछ तो लिखने के लिये छुपा रहता है… एक लेखक की नज़र से देखो तब नज़र आता है … उस समय हमारी कलम बोलती है… कोरे कागज पर सरपट दौड़ती है.. कभी प्रकृति, कभी सकारात्मकता, कभी प्रार्थना तो कभी यात्रा… कहीं बातें करते हुये रसोई के सामान, कहीं सुदूर स्थित दर्शनीय स्थान…

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