मन सोच मे पड़ गया…..
दिमाग पर ज़रा सा बोझ बढ़ गया…..
क्या होती है साधना ?
साधक का क्या होता होगा
साधना के बारे मे मानना…..
मेरे विचार से साधक का कर्मों के ऊपर
उसका विश्वास ही साधना होता होगा…..
जरूरी नही कि खोजा जाये साधना के लिये
निर्जन जंगल या दुर्गम पर्वतीय स्थल….
जीवन को जीने का सकारात्मक तरीका भी
कहाँ साधना से कम होता है…..
साधक हो अपनी साधना मे सकारात्मक
दृष्टिकोण से लीन…..
समझे न अपने कर्मों को
दूसरे की तुलना मे हीन…..
जीवन के सफर मे चलते हुए सामान्यतौर पर
इंसान स्वार्थी हो जाता है…..
हम से मै को अपनाता जाता है….
कभी जाने मे कभी अनजाने मे गलतियाँ
करता चला जाता है…..
अपनी चेतना और आत्मविश्लेषण की क्षमता
को भूलता जाता है…..
सुखों की चाह की मृग मरीचिका खुद मे
उलझाती है…..
बस इसी कारण से उसके वास्तविक स्वभाव
से उसकी दूरी बढ़ती जाती है…..
खुद को खोजने का समय खो जाता है…..
इंसान खुद के भीतर ही सो जाता है……
ईश्वर ने भी कितनी सही चीज बनायी…..
आत्मा के भीतर ही व्यक्ति को उसकी छवि दिखायी…..
अपनी आत्मा से बड़ा दर्पण कहीं भी नही होता…..
मन हो जब दुखी….
समझ न पाये व्यक्ति खुद को ही….
खुद की ही शरण मे जाना चाहिये…..
आराधना के स्थल पर सिर पटकने से पहले
खुद मे ही डूब जाना चाहिये…..
मेरे विचार से ध्यान रखनी चाहिए हमेशा
छोटी सी एक बात….
नही करनी चाहिए जानबूझ कर किसी के
दिल को दुखाने वाली बात…..
सब कुछ पल मे ही सँभल जाता है……
रोता कलपता हुआ व्यक्ति सँभला हुआ सा नज़र आता है……
व्यक्ति के कर्म, आस्था और सकारात्मक दृष्टिकोण
के साथ ईश्वर उन्हे अपनाता है…..
हौसले के साथ देकर मजबूत इरादे…..
आगे बढ़ने की राह दिखाता है…..
( चित्र internet के द्वारा )
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Nice one is this mam
Thanks 😊