कन्यादान विषय पर ,अजीब से द्वंद में उलझा हुआ सा समाज है न !
सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने वाले विषय , विचारशीलता को भी बढ़ा देते हैं। अलग- अलग विषय को विभिन्न विचारधारा के लोगों के सामने ,बाद – विवाद और परिचर्चा के रूप में ला देते हैं।
रोज का जीवन, पब्लिक ट्रांसपोर्ट का सफर,विज्ञापनों की दुनिया से इंसान को कितना करीब से जोड़ देता है। कभी- कभी इतना कि व्यक्ति अपनी परम्पराओं पर ही प्रश्न चिन्ह (?) छोड़ता जाता है।
बात करने के लिए हमेशा कुछ चाहिए। कुछ नया ,कुछ चटपटा ,तेजी से और गहरा आघात कर जाये , उन्माद को या भावनाओं को भड़काता हुआ हो तो “सोने पे सुहागा”।
देश के स्वतंत्र होने के समय कि परिस्थितियों ने, एक उदार राष्ट्र को जन्म दिया। विचार रखने कि स्वतंत्रता हर किसी को दिया।
कन्यादान , एक ऐसा शब्द जो हिन्दू महिला को ,विवाह जैसे शुभ संस्कार से जोड़ता है ,उसके बढ़े हुए दायरे और अधिकारों की बात कहता है।
धर्म ,संतान ,मान – सम्मान जो भी व्यक्ति अपने कर्मों के बल पर अर्जित करता है या, जन्म के संस्कारों के साथ पाता है वो धन है।
तिरस्कार के भाव के भीतर , संस्कार ,धर्म और परम्पराएं ? रूढ़िवादी समाज विकास की राह में पाँव में पड़ी हुई बेड़ियाँ ! बस इसी विचारधारा के साथ, युवा होता हुआ किशोरवर्ग।
एक हिन्दू परिवार की विवाहित महिला होने के नाते, कन्यादान जैसे संस्कार को आत्मा की गहराई से महसूस किया है।वहां पर विवाहित कन्या के मान या अपमान का प्रश्न ,कहीं छूता हुआ सा भी महसूस नहीं होता।
भारतीय पारम्परिक परिधान और पारम्परिक गहनों के विज्ञापन ,देशी जमीं के अलावा विदेशी जमीं पर भी बड़े समूह को आकर्षित करते हैं। दिमाग में सवाल ये आता है की क्या ,सिर्फ ऊपरी चमक दमक ही शुभ संस्कारों की आत्मा है ?
कन्यादान जैसा संस्कार न बाल विवाह को प्रोत्साहित करता है, न बेटी के अधिकारों का दमन करता है।
नाज नखरों से पाली हुई बेटी के विवाह के समय, नम आँखों के कोरों के साथ छलकते हुए आंसू भी बेटी को ,सुखी विवाहित जीवन का आशीर्वाद देने के लिए जल का सा काम कर जाते हैं।