कुछ वनस्पतियां ऐसी होती हैं जिनसे
जुड़ जाते हैं समाज के संस्कार…..
होती हैं ये वनस्पतियां औषधीय गुण,स्वाद
और तहजीब के साथ……
इन वनस्पतियों की श्रृंखला के बारे में सोचो
तो दिमाग में आता है पान का नाम…..
प्राचीन काल से पान के साथ जुड़ा हुआ है सम्मान……
पान सभ्यता और संस्कृति के साथ ससम्मान दोस्ती
की बात कहता है……
पान की बेल और पत्ते सचित्र आंखों के सामने घूम गये…..
ज़रा सा हैरान और परेशान से दिख गये…..
सार्वजनिक स्थानों पर दिख रहे कत्थई लाल रंग के दागों
को देखकर बिसूर रहे थे…..
अपनी उपयोगिता पर प्रश्नचिन्ह कर रहे थे…..
मुझसे बोले अच्छी विषयवस्तु को आपने अपने लेखन
के माध्यम से उठाया है……
पान के पत्तों को गुटखा और तंबाकू जैसी
हानिकारक चीजों के साथ चबाकर ही इंसानों ने
सार्वजनिक स्थानों को दागदार बनाया है……
पान के पत्तों को सिर्फ स्वाद के मद्देनजर नहीं देखना चाहिए….
पान के पत्तों के उपयोगी और स्वास्थ वर्धक गुण आश्चर्य में डालते हैं….
हिंदू मान्यता के अनुसार सृष्टि के निर्माण के समय
इसकी उत्पत्ति हुई थी……
अमृत मंथन के समय आर्युवेदज्ञ धनवंतरि के कलश में
जीवन देने वाली औषधियों के साथ पान का भी आगमन हुआ……
वैसे पान के उद्गम् के बारे में अलग-अलग तरह के
विचार सामने आते हैं……
हर भाषा में पान का अलग नाम है…….
संस्कृत में ताम्बूल, तेलगू में पक्कू,तमिल और मलयालम में
वेटिलाई और गुजराती में नागुरवेल कहलाता है……
पान का प्रयोग हिंदू संस्कारों से गहराई से जुड़ा हुआ
नज़र आता है……
पुराणों, संस्कृत साहित्य के ग्रंथों आदि में तांबूल के
वर्णन भरे पड़े हैं……
इसे सिद्धि प्राप्ति में सहायक ही नही कहा गया है……
यह भी कहा गया है कि जप में तांबूल गुरु को
समर्पित किये बिना सिद्धि अप्राप्त रहती है……
पान को यश, धर्म,मुक्ति,और ऐश्वर्य का भी साधक
माना गया है……
हिंदी की रीति कालीन कविताओं में भी तांबूल की
प्रशंसा मिलती है…….
धूप दीप और नैवेद्य के साथ पूजा पाठ में
आराध्य देव को चढ़ाया जाता है……
वहीं दूसरी तरफ पान को श्रृंगार और प्रसाधन का
आवश्यक अंग भी माना जाता है……
मुगलों के समय में बेगम नूरजहां ने होंठों को रंगने के लिए
कास्मेटिक की तरह इसके उपयोग को बढ़ावा दिया……
सुश्रुत संहिता के समान आर्युवेद के प्राचीन ग्रंथ में भी
इसके औषधीय गुणों की महिमा का वर्णन मिलता है……
पांनों में भी मगही पान सर्वोत्तम माना जाता है……
जिसकी खेती मुख्य रूप से मगध के तीन जिलों
नवादा, नालंदा और औरंगाबाद में होती है……
लोकश्रुति के अनुसार यह मान्यता भी है कि
पान के पत्ते को नागलोक से धरती पर लाया गया था……
पान को विजय का सूचक माना गया है……
पान का बीड़ा शब्द का महत्त्व यह है कि…..
इस दिन हम सन्मार्ग पर चलने का बीड़ा उठाते हैं…….
फिर क्यूं इतनी उपयोगी और गुणों से भरपूर प्रकृति की
दी हुई वनस्पति को…….
तंबाकू गुटखा जैसी हानिकारक चीजों
से लपेट कर
जानलेवा बीमारियों को खुद ही अपनाते हैं……..
पान का संबंध राजकीय शौक में माना जाता है……
निश्चित तौर पर पान का पत्ता राजकीय गुणों से भी भरा होता है…..
(सभी चित्र इन्टरनेट से)