मेरी इस कविता को मेरी आवाज मे सुनने के लिए आपलोग इस लिंक पर क्लिक कर सकते हैं।
परिंदे इधर उधर क्या देख रहा….
अपनी संजोयी हुई ऊर्जा को क्यूँ खो रहा….
अभी भी तू क्यूँ सो रहा….
कहीं सोचा तो नही तूने
अपनी उड़ान के सफर मे
थक कर रुकने की….
मत सोच अभी तो तेरा लक्ष्य बाकी है…..
ज़रा ध्यान तो लगा पंखों की मजबूती पर
अभी तो तेरी ऊँची उड़ान बाकी है…..
दिख रहा है ज़रा हैरान सा….
क्यूँ ज़रा परेशान सा…..
वो देख तूफानों के गुजर जाने के बाद भी
तेरी पहचान बाकी है…..
आज न सही तो कल करना है
आकाश और पाताल को मुट्ठी मे
अभी तो बहुत सारा काम बाकी है….
अब जल्दी से लगा ले ध्यान लक्ष्य पर
ये तो बता क्यूँ तुझमे अभी भी आलस्य
के ये निशान बाकी है….
एक बार फिर से बढ़ा ले अपनी हिम्मत और हौसले को
खुद को कर ले मजबूत….
लेकिन मत खोना ऊँची उड़ान के
चक्कर मे अपना वजूद…..
अब क्या हुआ क्यूँ कर लिया
अपनी आँखों के कोर को नम…..
जमाने की कड़वी बातों के
अभी भी निशान बाकी हैं…..
दफन कर के कड़वाहट जमाने की
भर तो उड़ान मजबूत इरादों की…..
अब यूँ ही नही मिलती सफलता……
असफलतायें ही तो बढ़ाती है
कुछ अलग करने की क्षमता…..
अब कूद पड़ो नये उत्साह और जोश के साथ समरभूमि मे
जीतने के लिए तो अभी सारा जहान बाकी है
( चित्र internet के द्वारा )
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बहुत ही उत्साहित करती है आपकी यह रचना।
अच्छा 😊मै तो हमेशा की तरह अपनी ही धुन मे लिखती चली गयी..
अगर और लोगों को उत्साहित करती है तो मेरा लिखना सार्थक हो गया😊