ऐ ईश्वर की शहजादी!…
दया और करूणा की पहचान……
कर रही है नि:स्वार्थ
भाव से तू अपना काम…..
कोई व्यग्रता नही तेरे भाव मे…..
मानवता के साथ-साथ इंसानियत
झलक रही है तेरे काम मे…..
नन्हे-नन्हे हाथों से बेजुबान प्राणी
कुछ तो खाता जाये……
जीव की चैतन्यता और जीवन को
बस किसी तरह से गति मिल जाये…..
ये मासूमियत ही तो है जो जीव को
सिर्फ चैतन्य देखना चाहती है…..
बेजुबान जीव को प्रफुल्लता के साथ
कुलाचें मारते हुए
भागते देखना चाहती है. ….
इस तरह के नि:स्वार्थ भाव पालतू जानवर और
इंसानों के बच्चों के अलावा
हर जगह खो गये…
बचपन की दहलीज़ से बाहर आते ही
इंसानों के अंदर सो गये…..
इंसान ही इंसान से हारा है…..
शायद स्वार्थ का इंसान के अंदर ठिकाना है…..
आत्मा की कोमलता को इंसान
खुद ही छलता है…..
चलते हुये जीवन मे आँखें बंद कर के फिरता है….
जगह जगह धर्म और स्वार्थ की राजनीति दिखती है…..
बस इसी कारण से ही दंगा फसाद और उग्रवाद
जैसी बीमारियाँ फलती और फूलती हैं….
मनुष्य होना अपने आप मे ही
वरदान होता है….
प्रकृति का मनुष्यों के ऊपर
एहसान होता है…..
साथ मे ईश्वर का फरमान होता है…..
जीवन के बहाव मे सुख समृद्धि के साथ
ज़रा सी मनुष्यता और इंसानियत
इंसान के अंदर बच जाये…..
बस उसी इंसानियत को देखकर खुदा के साथ-साथ
प्रकृति भी खिलखिलाये…..