बात सावन मास की हो तब बारिश की बूँदे ,सोंधी सी मिट्टी की महक के साथ सामने आती है…
पंक्षियों का कलरव शांत सा… मुखर सी सुनाई पड़ती बूंदों की आवाज… बीच -बीच में सुनाई पड़ती बादलों की गड़गड़ाहट… ऐसा लगता मानो…
अधकच्ची नींद में सोये हुए इंसान की बड़बड़ाहट… अचानक से तीव्र सी आवाज… साथ में चमकती हुई रौशनी का साथ… दिखाई दी तड़कती भड़कती हुई बिजली… ऐसा लगा मानो… बूंदों की मीठी सी आवाज सुन कर, जोर से बिगड़ी… सोते से जागते हुए पंक्षियों का कलरव… बारिश से भीगे हुए पंखों को सुखाने का उपक्रम… बारिश से बने ताल तलैया… बरसात के मौसम में बहुतायत से दिखे… खोजता दिखा बचपन कागज की कश्ती…. अचानक से दिखा रंगबिरंगी छतरियों का क्रम…. नन्हे हाथों से सँभालते बारिश से भीगते कदम… दिखी आँखों में शरारत ,बारिश की बूंदों में भीगने की चाहत… बारिश के थमते ही कलम भी थमी…. बारिश की बूंदों से भीगी सी दिखी… मानो अपने अंदाज में कह रही हो… भीगे हुए शब्दों को जरा सा सुखा दूँ… रंग बिरंगे शब्दों की छतरियां इनको भी उढ़ा दूँ…