( चित्र दैनिक जागरण के द्वारा )
उगता हुआ सूरज हो या डूबता हुआ सूरज हो…..
आकाश मे हो प्रभात की अरुणिमा…..
या सूर्यास्त की लालिमा…..
दबे पाँव चला आ रहा हो चाहे तारों के साथ चंद्रमा….
बच्चों का उत्साह भला कौन चुरा सकता है…….
ऐ प्रकृति!अब तू ही ये बता……
बचपन मे छुपे हुए भगवान के बाल रूप को……
भला कौन क्षण क्षण पर रुला सकता है……
धूप की तपन हो या बारिश की बूँद……
आँधी और तूफानों के बीच मे खेलेंगे…..
निकले अगर मुसीबतों के समय आँसू….
तो आँसुओं के साथ मुँह को धो लेंगे…..
हम बच्चे हैं हँसते खेलते हुए…
बड़े बड़े तूफानों को भी खिलौना समझकर झेलेंगे…..
अब वो आकाश को देखो सूरज भी बच्चों के बीच मे
चुपचाप आ कर खड़ा है……
बच्चों की मस्ती के बीच मे अपना बचपना खोज रहा है…..
पाँव के नीचे है रेत का ढेर….
पता है इसको खिसकने मे लगती नही है देर…..
चलती हुयी पवन की गति, इन रेत के कणों को उड़ायेगी….
रेत के चमकीले कणों से आँखों को चमकायेगी……
बच्चों का मस्तमौला अंदाज, भगवान को भी भाता है…..
उनका खिलंदड़ अंदाज, मन को लुभाता है…..
कौतूहल उनकी आँखों मे हमेशा….
शरारत करता हुआ नज़र आता है….
आज मै ऊपर,आसमां नीचे की बात को, सच कर के देखते हैं….
ज़रा सा उलट पुलट कर, आकाश को देखते हैं….
रेत के टीलों मे से, कुछ समेटते हैं….
सीप हो, शंख हो या, अनमोल पत्थर
ज़रा यत्न के साथ खोजते हैं…..
जीवन के अनमोल पलों को, हँसते खेलते हुये गुजारते हैं….
अपनी उछलकूद और मुस्कान से,औरों को जीवन जीने
का अंदाज सिखलाते हैं. ….