जीवन की भागादौड़ी सदियों से चली आ रही है……
वर्तमान से अगर भूतकाल को देखो तब इतनी
भागादौड़ी नही दिखती…..
लेकिन दूसरी तरफ यदि भविष्य की तरफ नज़रों को फेरो…..
तो आपाधापी थमती हुई नहीं दिखती……
अगर कभी तुलनात्मक तरीके से समाज को देखो…..
तो इंसान का जीवन संस्कृति और संस्कारों के साथ
बदलता दिखता है……
व्यक्ति के सजने संवरने का तरीका भी हर समय
बदलता हुआ दिखता है…..
बदलते हुए समाज की गहराई में जाने पर यह समझ में
आता है कि….
भूतकाल में इंसान प्राकृतिक तरीके से खुद को
स्वस्थ और सुंदर रखने के तरीकों को समझता था……
उसके अनुरूप ही खुद को बाह्य और आंतरिक रूप से
स्वस्थ और सुंदर रखने का प्रयास करता था…..
चाहे राजे रजवाड़ों का समय हो, या हो मुगलकालीन सभ्यता…..
हर समय प्रकृति के द्वारा दी चीजें ही सौंदर्य प्रसाधन के
रूप में उपयोग में आती थीं…….
अगर केशों की तरफ ध्यान दो तो लंबे लहराते हुए केशों को……
तरह तरह के सुगंधित तेलों और फूलों के द्वारा सजाया जाता था……
चाहे महिला हो या हो पुरुष हर किसी के लिए केशों की साज-सज्जा
महत्त्वपूर्ण होती थी……
समय के परिवर्तन और ब्रिटिशों के आने के साथ ही
सभ्यता और संस्कृति में भी बदलाव होने लगा……
लंबे केशों का आकार महिलाओं के अलावा पुरुषों में
भी छोटा होने लगा…..
वर्तमान में बालों के साथ तरह-तरह के प्रयोग होते रहते हैं…..
बदलते समय और उत्सव के मुताबिक बालों के आकार प्रकार
और रंग बदलते दिखते हैं….
आंतरिक सुंदरता को अगर एक तरफ रख कर सोचो तो…..
बाहरी सुंदरता में केशों का स्थान विशेष माना जाता है….
इस कमजोरी को ही बाजार भुनाता हुआ दिखता है….
चाहे वो शैम्पू हो या तरह-तरह के जैल या तेल…..
हर कोई केशों की जरूरत समझकर जेबों को ढीली
करता दिखता है…..
भारत का दक्षिणी भाग अभी भी लंबे बालों के साथ….
गुथी हुयी चोटी की साज सज्जा के सामान और
स्वस्थ बालों के साथ दिखता है…..
छोटी बच्चियों के लंबे बाल हमेशा खूबसूरत दिखते हैं…
उनकी चोटियों को गुथने के कुछ भारतीय तरीके तो….
वहीं कुछ विदेशी तरीके भी समाज में प्रचलित होते हैं…..
अगर ज़रा सा गहराई से सोचो तो,बालों के साथ
व्यक्ति के संस्कार जुड़े होते हैं….
हिंदू धर्म में जन्म से लेकर मृत्यु तक बालों और
संस्कारों का साथ होता है…..
कहीं मुंडन संस्कार कहीं उपनयन संस्कार तो कहीं…..
उम्र की किसी भी अवस्था में आस्था के रूप में ही…..
अपने केशों को चढा़ना भी संस्कार का ही एक अंग होता है…..
बालों का वह गुच्छा जो हिंदू लोग अपने सिर के ऊपरी भाग में
मुंडन के बाद छोड़ते हैं….
वह चुटिया,चोटी या शिखा कहलाती है…..
जिसे धर्म व संस्कार से जोड़ते हैं….
भौतिक विज्ञान के अनुसार चोटी रखने के
2से3 इंच नीचे का स्थान ही आत्मा का स्थान होता है…..
विज्ञान के अनुसार यह मस्तिष्क का केंद्र होता है……
मन और बुद्धि को नियंत्रित करने का भी स्थान है…..
चोटी ब्रम्हाण्ड से आने वाले सकारात्मक और आध्यात्मिक
विचारों को भी ग्रहण करती है…..
वैदिक संस्कृति में चोटी को विशेष स्थान मिला है…..
मुंडन और उपनयन संस्कार के बाद बच्चा द्विज कहलाता है….
द्विज का मतलब जिसका दूसरा जन्म हुआ हो….
इतिहास की तरफ नज़रों को फेरो तो….
चोटी दृढ़ प्रतिज्ञा की बात भी बताती है…..
किंवदंतियों के अनुसार मगध के राजा महानंद ने….
श्राद्ध के अवसर पर चाणक्य को अपमानित किया था….
चाणक्य ने क्रोध के वशीभूत होकर चोटी को खुला छोड़ दिया…..
और प्रतिज्ञा पूरी होने के बाद ही चोटी को बांधा….
ईश्वर के द्वारा दिया हुआ शरीर जन्म के साथ
संस्कारों से जुड़ जाता है…..
इंसान समय के साथ संस्कारों को रूढ़िवादी बातें मानकर…..
बाहरी सुंदरता और दिखावे के पीछे भागता जाता है….
अचानक से सभ्यता, संस्कृति और संस्कारों से जुड़ी हुई बातें……
जीवन में तब ज्यादा महत्व की लगती हैं…..
जब सारा विश्व वैज्ञानिक आधार पर इस तरह के संस्कारों को
सराहने के बाद गर्व से अपनाता हुआ नज़र आता है…..
( समस्त चित्र इन्टरनेट से)
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Good one