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मानवता और इंसानियत चीख चीख कर कहती है……
ज़रा धीर धर ऐ इंसान!
उधर देख भोर की किरण कहाँ
देर तक सोती है…..
तिमिर छिटक ही जाता है……
रात के अँधियारे को ज़रा गौर से तो देखो….
अमावस के अँधेरे के बाद ही तो
पूर्णमासी की चाँदनी छिटकी होती है….
गहराते हुए अँधेरे मे चाँद और तारों की
रोशनी भी बड़ी भली लगती है…
अब ज़रा हौले से चाँद और तारों से परे तो करो ध्यान….
वो देखो दीपक की लौ हो या जुगनुओं की चमक…..
उम्मीदों की किरण से ही तो रोशनी फैली होती है…..
रात का अँधेरा हो या दिन की रोशनी……
ईश्वर के दिये हुए “दिये”मे कहाँ कम रोशनी होती है….
जलता है जीवन हमेशा
दीप के ही तो समान….
दीपक की लौ तेज हवाओं मे
हिम्मत के साथ ही तो जली होती है…..
सफलता की तलाश मे राह मे मत भटकना ऐ राही!
दूर दिखती हुई मंजिलों के रास्ते मे हमेशा बाधायें खड़ी होती हैं……
रास्ते कटीले पथरीले के अलावा कीचड़ से भरे हुए भी मिलते हैं……
छींटे कीचड़ के उछल कर राही के तन पर भी पड़ते हैं…..
वो देख दुर्गम वन भी सफलता की राह मे खड़े दिखते हैं…..
सुन राही !कर ले अपने मन को मजबूत…..
समेट ले बेकार की इच्छाओं और अपेक्षाओं को समूल….
मंजिल मिलेगी जरूर….
इरादों की मजबूती ही ऊँचाईयों पर ले जाती है…..
सफलता के नये शिखर बनवाती है….
इंसान की हिम्मत ही तो हौसला बढ़ाती है…..
भयभीत होकर मत गिराना कभी अपना हौसला…..
क्योंकि राह मे डराने वालों की भीड़ खड़ी होती है…..
अब ज़रा खुद के अक्स को तो पहचान ले राही
सफलता दूर कहाँ मेहनतकश लोगों की राह मे
ही तो खड़ी होती है….
( चित्र internet के द्वारा)
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bahut badhiya kavita.
समय समय पर उत्साह बढ़ाने के लिए आपका धन्यवाद 😊
Really motivating and full of positivity
Thanks😊