पानी के पड़ते ही, मिट्टी का रंग बदलता है…
बारिश की बूँदों को,मिट्टी के टीलों पर पड़ते
हुए देखो, तो यह सच दिखता है…
दूसरी तरफ नदियों के साथ,बह कर आती हुई मिट्टी
पानी का रंग बदल देती हैं…..
साफसुथरे पारदर्शी से, जल का मटमैला
या भूरा सा रंग कर देती हैं…..
बरसात के समय ,नदियाँ उसी मटमैले जल के साथ बहती हैं…
उफ़ान कम होने पर, अपनी गति को कम करती हैं…
उफ़नती हुयी नदियाँ, भयावह लगती हैं…
सब कुछ बहा कर, ले जाने को आतुर दिखती हैं…
ज़रा सा सँभलती ,ज़रा सा ठहरती हैं..
बहा कर लायी हुई मिट्टी को किनारों पर उगल देती हैं…
नदियों द्वारा उगली हुई मिट्टी, गाद कहलाती है….
वनस्पतियों के लिए उपयोगी, खाद का काम कर जाती है…
नदियों के मुहानों को ,उपजाऊ कर जाती है..
ऐसा लगता है धरा को ,अपने अंदर संजो कर रखा हुआ
उपहार दे जाती हैं..
देखा मिट्टी के टीलों को भी, बारिश के पानी से भीगते हुए…
आकाश के द्वारा ,वनस्पतियों को सींचते हुए…
टीले से बहती हुई मिट्टी, फैलती जा रही थी..
धरा को अपने पीले और मटमैले,रंग से रंगती जा रही थी..
बहती हुई मिट्टी,अपनी जगह खोज रही थी…
पौधों की क्यारी मे जाऊँ,या नाली मे जाऊँ
शायद यही सोच रही थी…
अचानक से देखा ,बूँदों की गति बढ़ गई…
देखते ही देखते मिट्टी ,पौधों की तरफ बढ़ चली…
पानी की धार के साथ, कदमों को बढ़ा चली..
क्यारी मे पहुँचते ही पौधों की जड़ों मे समा गयी…
बोली क्यारियों से अच्छी, हमारे लिए कोई और जगह नही…
अब हम यहीं ,आराम फरमायेंगे..
पेड़ों की पकड़ को ,मजबूत करते जायेंगे..
आँधी तूफान हमे ,कहाँ बहाकर ले जायेगा…
हमारी उर्वरता को, कभी न खत्म कर पायेगा…
पानी का बहाव जहाँ, छोड़कर जायेगा उसी जगह को
उपजाऊ कर के दिखायेंगे…
1 comment
Very nice post
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