( चित्र दैनिक जागरण के द्वारा )
तस्वीर मे मासूमियत सशंकित सी दिखी ….
किताबें हो या ईंटों के नीचे छिपी सी दिखी ….
समाज के अलग-अलग रूप दिखते …..
कई बच्चे शिक्षा जैसी जरूरी चीज से महरूम
लेकिन बाल मजदूरी से जुड़े होते …..
गरीबी और अशिक्षा समाज मे मुँह खोल कर खड़ी …..
गरीबी के तले शिक्षा बेमतलब…..
पेट की भूख सबसे पहले खड़ी दिखी …
परिवार के सदस्य मजदूरी से मुश्किल से
अपना पेट भर पाते ….
ऐसी परिस्थिति मे शिक्षा की उपयोगिता को
जरूरी नही समझ पाते ….
इस तरह के वातावरण मे समाज हमेशा डगमगाता है ….
अपने अंदर तरह तरह के अपराधों को जन्म दे जाता है ….
हृदय हमेशा कसमसाता है
जब बचपन मजदूरी करता ….
या लाल बत्तियों पर हाथ फैलाकर
भीख मांगता नज़र आता है ….
मेरे विचार से अनजाने मे ही हम एक
बड़ा अपराध करते जाते हैं …..
पुण्य कमाने के चक्कर मे गंभीर
पाप करते जाते हैं ….
बचपन के हाथों मे रुपये पकड़ाकर
अपने चेहरे को संतुष्टि के भाव से चमकाते हैं ….
कर लिया हमने अपने मन के मुताबिक काम ….
दे दिया भीख के रूप मे चंद सिक्के उनकी
दीन हीन सी मुखाकृति के दाम …..
नही सुनना चाहता ऐसा बचपन शिक्षा की अहमियत ….
मेहनत और खुद्दारी की बातें ….
जब दिखे ऐसा बचपन जो बिना शिक्षा के
बालश्रम के किसी भी कार्य से हो जुड़ा ….
चंद सिक्कों की मांग करता हो …
या शिक्षा से इंकार करता हो ….
जरूरत सिर्फ इतनी होनी चाहिये ….
इसतरह के दलदल से बाहर निकालने की
कोशिश पुरजोर की जानी चाहिये ….
करते हैं ऐसे जरूरतमंद बच्चों को हुनरमंद …..
जगाते हैं उनके अंदर शिक्षित होने की अलख …..
ईंटों या भीख के कटोरे की जगह पर थमाते हैं
कागज और कलम …..
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अच्छी सोच के साथ लिखी गई है। लेकिन दुखद बात है कि अच्छी शिक्षा आज भी कुछ प्रतिशत बच्चों को ही मिल पाती है। भारत में शिक्षा का गिरता स्तर एक अलग चिंता का विषय है।
मैने ये कविता रास्तों पर भीख मांगते बच्चों और कवर इमेज की तस्वीर को देखकर लिखी थी । भीख मांगते हुए बच्चों के चेहरे के भाव कितनी जल्दी परिवर्तित होते हैं,जरूरतमंद की सहायता करना कभी बुरा नही होता ,लेकिन बिना मेहनत का पैसा और बचपन को ऐसे हाथ फैलाते देखना मुझे कभी अच्छा नही लगता।बेसिक शिक्षा तो गरीबों के लिए हवा पानी की तरह जरूरी है😊
Lovely msg given
Thanks😊