ऋतुओं का परिवर्तन, अनोखा होता है…..
ऐसा लगता है, प्रकृति ने मानो करवट
बदला होता है…..
शीत ऋतु ,प्रकृति के अलग ही रूप को दिखाती है….
बारिश की बूंद, पसीने की बूंद….
हो गयी बीती हुई ऋतु की बात….
वनस्पतियों पर चमकती ओस की बूंद….
शीत ऋतु मे कराती है….
शीतलता का एहसास…..
सूर्य की किरणें, ओस की बूंदों को
अद्भुत चमक से भर देती हैं….
यह बात शीत ऋतु की है, जो
गर्म कपड़ों ,स्वादिष्ट खाने और रंग बिरंगे फूलों के साथ
जीवों को उत्साहित करती है…
हमारे दिल्ली शहर मे, ज़रा सी
कुम्हलाई सी शीत ऋतु दिखती है….
पर्यावरण प्रदूषण का प्रभाव ,शीत ऋतु के
गुणों को ,कम करता हुआ दिखता है….
भारतीय संस्कृति के साथ आर्युवेद ने
ब्रम्हमुहूर्त मे जागने के गुणों पर प्रकाश डाला….
देश विदेश मे होने वाले वैज्ञानिक शोध भी
ब्रम्हमुहूर्त मे, वातावरण की शुद्धता की बात
कहते आये हैं…..
इंसान सुबह की सैर ,और योग ध्यान के माध्यम से…
अपने भीतर संजीवनी शक्ति का, संचार कर सकता है…..
प्रकृति भी ब्रम्हमुहूर्त मे ,चैतन्य हो जाती है….
दिनकर ने भी ,आँखों को खोलने की तैयारी की होती है….
पेड पौधे भी जागे हुए से दिखते हैं….
पक्षी भी कलरव ,करने लगते हैं….
ऐसा लगता है,मानो सब को पता है….
हवा इस समय अमृत समान है….
शुद्ध हवा को ग्रहण करो….
स्वस्थ जीवन की राह पर,आगे बढो….
लेकिन ,हमारे शहर को ये क्या हुआ?
सुबह की हवा ने ,लोगों के स्वास्थ्य को हरा…..
समाचार पत्रों मे ….
वाटर प्यूरीफायर के साथ, अब एयर प्यूरीफायर के विज्ञापनों ने,जगह को घेरा है…..
खराब हवा से बचने के लिए मास्क का भी
चारो तरफ डेरा है……
सारे शहर को ,हवा के प्रदूषण ने डस लिया……
धुएँ और धूल ने,ठंडी हवा के साथ मिलकर
स्माॅग का रूप ,धर लिया…..
यह कैसा विकास है?
जहाँ भारतीय संस्कृति और, आर्युवेद का ज्ञान भी
हाशिये पर चला गया…..
सीने की जलन और आँखों की जलन …….
दिल्ली शहर के, राजनीतिक द्वंद्व की ही बात नही बतलाती….
लोगों को ,इस तरह की स्वास्थय संबंधी परेशानियाँ…..
प्रदूषण के कारण भी होना वाजिब है……
ऐसा लगता है मानो प्रकृति….
अपने ही अंदाज मे पर्यावरण प्रदूषण की बात….
बोल रही हो…..
अब तो रुको….
अब तो ठहरो…..
दे दो कितने भी व्याख्यान …..
कर लो बैनर और पोस्टर के माध्यम से….
पर्यावरण को बचाने के, कितने भी प्रयास….
जब तक विकास के लिए, अंधाधुंध भागते हुए
कदम नही ठहरेंगे …..
प्रकृति के साथ ,पर्यावरण की बात को…..
धैर्य के साथ,नही सुनेंगे, नही समझेंगे….
तब तक घुटती हुई साँसें हों या…
आँखों मे जलन के साथ…….
पर्यावरण प्रदूषण से बचने के
तमाम साधनों के बाजार…..
यूं ही सजते रहेंगे …..
सामान्य नागरिकों की जेब पर
भारी पड़ते रहेंगे….
(सभी चित्र Internet से)
0 comment
I spent seven years in Delhi, finished my college in Delhi; I agree with you so much of pollution affecting life. When ever I land in Delhi I fall sick just because of pollution.
समसामयिक घटनाचक्र के हिसाब से लिखा गया पोस्ट, काफी अच्छा है।
धन्यवाद 😊