लेखक के विचार हर सुबह साथ होते हैं ,आँखें खुलते ही लिखने की विषय वस्तु
तलाशते से लगते हैं ….
सुकून के साथ ‘आरामतलबी’ की सुबह मे ..
“टुकड़ा धूप का” नज़र आ गया ….
सुबह की किरणों के साथ ….
उत्साह से भरा हुआ ….
जमीं तलाशता हुआ,नज़र आ गया …
कभी दिखा महीन सी लकीर समान ….
कभी त्रिभुज सा आकार ….
कभी चतुर्भुज सा आकार ….
कहीं और कभी तो दिखा,नन्हा सा शून्य के समान ....
बार बार अपना आकार,बदलता सा दिखा ….
कहीं एक जगह,ठहरता सा न दिखा …,
कभी दीवारों पर सुस्त से बैठे हुए …
बल्ब के ऊपर ही जाकर टिका ….
बिना बिजली को जलाये हुए ही ….
रोशनी बिखेरता सा दिखा ….
” टुकड़ा धूप का”! स्वभाव से ‘अति चंचल’…..
कभी तो कुर्सी के ऊपर शायद !….
सुबह की चाय के इंतजार मे,बैठा हुआ दिखा ….
खाली चाय ही नही ….
बिस्कुट की ‘दरकार’ करता हुआ सा भी लगा….
रसोई की फर्श और दीवार पर ….
सबसे ज्यादा समय व्यतीत कर रहा था ….
ऐसा लग रहा था मानो !खाने पीने की चीजों का …
हिसाब-किताब रख रहा था ….
मुख्य कमरे की दीवारों पर ….
चंचलता से कभी चढ़ रहा था ….
कभी उतर रहा था ….
अपनी राह मे आती हुई …..
धातु और काँच की चीजों के कारण ….
‘झिलमिलाती’ हुई चमक ….
दीवारों पर दिखा रहा था ….
देखते ही देखते ….
हमारे विचारों के साथ हो लिया ….
खुद के बारे मे कुछ लिखवाने की चाह मे ….
कागज और कलम के साथ भी दिख गया ….
“टुकड़ा धूप का” एक बार फिर से
चंचलता से सरकता दिखा ….
घर की दीवारों से बाहर निकलकर ….
वनस्पतियों पर जा कर टिका ….
0 comment
Beautiful. Beyond expression how to express the feelings
जिस प्रकार रात के घने अंधेरे को चीरकर धूप का एक कतरा आता है वैसे ही सुबह सुबह आप के अंदर से कविता बाहर निकली।