दिखती है, चारो तरफ तड़क-भड़क..
राह मे दिखती है, सड़क ही सड़क..
बेहतर कल की तलाश मे
भटकता दिखा इंसान….
राह मे दिखता,कभी हैरान तो कभी परेशान…..
उमड़ घुमड़ के चल पड़े काले बादल…..
सिमट गई आकाश के कोने मे
रोशनी ओढ़ कर चादर….
बिखरी हुई थी चारो तरफ
उम्मीदों की रोशनी…..
उसी रोशनी मे भटकता दिखा इंसान…..
बेहतर कल की तलाश मे
आज को खोता चला…
कभी तो जोश के साथ, बढ़ चला..
कभी होश खोकर, चल पड़ा…
कभी “हम”को साथ ले कर बढ़ चला….
कभी “मै”के दायरे के आसपास ही सिमट गया…
बादलों के बीच मे छिपता हुआ सूरज
हौले से मुस्कुराया….
दिन की रोशनी भी, आज को समेट रही थी…
पूर्णमासी की किरणें भी…
कल होने वाले,उजाले की बात कह रही थीं….
देखते ही देखते एक बार फिर से
आज बीत गया…
भोर का सूरज आकाश मे
उदित हो गया…..
परिंदों के कलरव के साथ
सुबह गुनगुना रही थी…
सकारात्मकता और आशा
हौसले को बढ़ा रही थी…..
( चित्र internet से )
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बहुत खूब लिखा है