चित्र http:// www.clicksbysiba.wordpress. com के सौजन्य से
ए पवित्र गंगा आज ! आज तुम्हारे “उद्वेग” मे कमी क्यूँ दिखती
लगती हो वैसे तुम शांत सी भली
करती हो सफर बड़ा लंबा
रास्ते मे “हिमालय” भी खड़ा
“गंगोत्री” से “गंगा सागर” तक लगता है
तुम्हारा सफर भला
मानव जीवन की तरह ही तुम्हारा
सफर दिखता
सफर मे चलते चलते कहीं न कहीं
तुम्हारा “उद्वेग” थमता
दिखती हो कहीं “कलकलाती” कहीं “इठलाती”
अपने प्रवाह मे तरह तरह की आवाजें निकालती
कहीं महसूस होता बहाव इतना “तीव्र”
लगता है कि तुम पूरा करना चाहती हो
अपना सफर “अतिशीघ्र”
कहीं बहाव मे” क्षणिक” ही सही तुम्हारा
तीव्र क्रोध दिखता
बहा ले जाती हो किनारों को भी अपने
क्रोध के प्रभाव से
कहीं इतनी भली बन जाती हो कि
किनारों को “उपजाऊ” करके
शांत भाव से आगे बढ़ जाती हो
कुछ भी हो तुम्हारी “शीतलता” , तुम्हारी “निर्मलता”
मन को बड़ा भाती है
इसीलिये तो तुम “अमृतमयी” कहलाती हो
जनमानस के शीश को अपने कदमों मे
श्रद्धा और विश्वास के साथ झुकवाती हो
इसीलिये तो तुम “जीवन तारिणी” और “जीवन दायनी” भी कहलाती हो
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बेहद उम्दा वर्णन माँ गंगा का
धन्यवाद … गंगा माँ का शब्दों मे बाँधना कठिन है ,लेकिन फिर भी मैने छोटा सा प्रयास किया 😊