विशू ..विशू..विशूशूशू ..बड़ी जोर जोर से माँ की आवाज, विशाखा के कानों मे सुनायी पड़ी।
सीढ़ीयों से भागती हुई, हांफते हांफते माँ के पास पहुँची ,आपने बुलाया माँ !
हाँ, तुमने अपना सामान पैक कर लिया, और तुम्हारे उत्पाती भाई का ?माँ की आवाज मे सवाल के साथ साथ आदेश भी था ।
पूरे साल की पढ़ाई के बाद, अब जा कर गर्मी की छुट्टियाँ हुई । विशाखा को बड़ा भाती थी गर्मी की छुट्टियाँ ।कितनी आतुरता होती थी आँखों मे, ऐसा लगता था पंख होता तो जल्दी से उड़कर ,दादी के घर पहुँच जाती ।
माँ ने विशाल और विशाखा दोनो को, अपने सामने खड़ा किया। हर बार की तरह सारे निर्देश दिये जा रहे थे कि , गांव मे तुम लोगों को क्या करना है ,और क्या नही करना है।
मुसीबत ये होती थी कि, माँ की आँखों मे आँखे डालकर सारी बातें , ध्यान से सुननी पड़ती थी।
विशाखा ने रहस्यमयी मुस्कान, विशाल की तरफ फेंकी, और ज़रा सा बोरियत वाला चेहरा बनाया ।क्योंकि हर साल उन्हीं घिसी पिटी बातों को ,वो एक कान से सुनकर दूसरे कान से बाहर निकालती जा रही थी।
इस बार वो अपने मन मे ठान कर जा रही थी, कोई कुछ भी कहे , इस बार तो मै उस खंडहर और डरावनी कुलिया(सँकरी गली) को देखने शाम को जरूर जाऊँगी।
लेकिन मुश्किल ये थी कि अगर ,विशाल को उसके इरादे का पता चल जाता तो, वो एक नम्बर का “चुगलखोर” “माँ का चमचा”सबसे पहले उगल देता।
मन ही मन मे सोच सोच कर “उत्साहित”हो रही थी। उसे पिछले साल की गर्मी की छुट्टीयाँ याद आ रही थी ।
पता नही इस बार नहर मे कितना पानी होगा ,हर बार अभ्यास करना पड़ता है, उस पतले से सीमेंट के खंबे के पुल पर चलने का ।जब तक उस पर भागने मे पूरी तरह से पारंगत होते, तब तक वापस आने का समय हो जाता था ।
सोच कर दुखी हो गई विशाखा !
पिछली बार अपने को सँभालने की कोशिश करते करते कुक्कू! नहर मे गिर गई थी । उस घटना को याद कर के जोर से हँस पड़ी विशाखा ।
उसे आज तक ये बात समझ मे नही आयी कि
किसी दूसरे के गिरने पर, सामने वाला व्यक्ति अपनी हँसी क्यों नही रोक पाता है।
अपने ऊपर भी , जोर से गुस्सा आया ।
पापा से भी तो सवाल पूछा था विशाखा ने , पापा ने बड़े प्यार से समझाया विशू बेटा !आप अभी बहुत छोटी हैं ,इस तरह की फिलासफी वाली बातें करने के लिए।
एक बात हमेशा याद रखना, किसी के ऊपर उठने पर “जलना” और किसी के गिरने पर” हँसना” यही समाज का “दस्तूर” है और यही इंसान का “फितूर” है।
आखिरकार वो दिन भी आ गया ,जब गाँव की” सरजमीं “पर पांव पड़े । चाचा , ताऊ, बुआ सब के बच्चों को मिला लो तो, दर्जन भर से ज्यादा भाई बहन होंगे इस समय घर मे।
लेकिन इसमे से “विश्वासपात्र” कौन कौन है ,इस बात को पता करना बहुत बड़ा काम था विशाखा के लिए ।
हल्के से भी अगर “खंडहर” और “कुलिया” की बात करो तो सभी लोग डराना ही शुरू कर देते हैं।
सारे भाई बहन ऐसे खिसकना शुरू हो जाते जैसे “गधे के सिर से सींग”।
ऊपर से दादी की “हिटलरी आँखें” तो विशाखा को, अपनी पीठ पर ही चिपकी हुई सी महसूस होती थी ,लगता था उनको विशाखा के ऊपर शक हो गया था।
प्यार के साथ साथ गुस्से को भी शामिल किया था उन्होंने, अपनी बातों मे सारे बच्चों सुनो! आम के बाग की तरफ जाना, लेकिन खंडहर और कुलिया की तरफ अगर किसी ने पांव रखा तो पांव तोड़कर हाथ मे पकड़ा दूँगी ।
बड़ी खड़ूस है ये दादी भी बोल सारे बच्चों को रही हैं, और देख मेरी तरफ रही हैं. मन ही मन मे बुदबुदायी विशाखा !
उस दिन बड़े “मान मनौव्वल” के बाद, विशाखा को लेकर कुल चार बच्चों की टीम तैयार हुई खूफिया मिशन के लिए ।
उन जगहों पर बुरी आत्माओं का साया होने के कारण “हनुमान चालीसा” याद होना अनिवार्य था । कोरस मे गाने पर सभी ने अपने को सिद्ध कर दिया कि सभी “बजरंगबली हनुमानजी” के भक्त हैंl
लेकिन विशाखा को पूरी याद नही थी हनुमान चालिसा! यह बात उसे पता थी कोरस मे उसने भी गा लिया था ।
आज दादी बड़ी खुश थी, सारे आने जाने वाले लोगों को बता रही थी कि, हमारे पोते पोती बड़े संस्कारी हैं।सुबह सुबह बिना हनुमानजी को याद किये, अपना कोई काम शुरू नही करते।
अनजान थीं दादी !!इस बात से कि शाम को, कहाँ जाने की तैयारी मे बानर सेना लगी हुई है।
माँ को कहाँ जादा फुरसत मिलती थी, लेकिन बीच मे तीन चार बार खोज लिया करती थी वो विशाखा को।
चुपचाप शाम के धुन्धलके मे ,खंडहर के पास पहुँच कर अंदर प्रवेश करते ही, खंडहर के प्रहरी चमगादड़ों के आक्रोश का, सामना करना पड़ा बच्चों को । ऐसा लगा मानो सब को वहाँ से भगा कर ही, दम लेंगे ये चमगादड़ ।अजीब सी सड़ान्ध नाक मे भर गयी थी।
मानो कई दिन पुराना, मरा हुआ कोई जानवर पड़ा हो वहाँ पर।
दादी की बातें याद आ रही थी उसे ,वहाँ पर जाकर न जानवर सही सलामत आता है न इंसान खबरदार अगर उधर किसी ने पांव रखा…
बड़ा डरावना सा एहसास था वहाँ ,लेकिन अजीब सा खिंचाव था खिचती चली गई विशाखा ।
एक बार पीछे मुड़कर देखा ।सारे के सारे बच्चे चमगादड़ों के आक्रमण से ही घबरा गये थे लगता है भाग गये ।
इस बात की आशंका पहले से ही थी, डरपोक कहीं के मुझे अकेला छोड़कर भाग लिये ।
कोई बात नही, अब तो अकेले ही रास्ता पार करना होगा, घर वापस जाने का रास्ता तो कुलिया(सँकरी गली )से ही होकर जाता है ।आसमान की तरफ देखा, चाँद और तारे भी आ गये थे।
रात की गहराई भी बढ़ गई थी, अनजाना सा डर भी दिल मे समाने लगा था ।
खंडहर से निकल कर, कुलिया की तरफ अपने पांव को बढ़ाया विशाखा ने
सामान्यतौर पर सारे बच्चे ,एक ही साँस मे हनुमान चालिसा गाते हुए, कुलिया को दिन के उजाले मे भी पार करते थे।
अचानक से उसे लगा कि, कोई चल रहा है उसके साथ-साथ, ज़रा सा ठिठक कर उसने चारो तरफ देखा !कोई नही दिखा । रात मे बंदर सोये रहते थे पेड़ों के ऊपर, और खंडहर की दीवारों पर उन्हीं की आवाजें ,और हलचल सुनाई पड़ रही थी बीच बीच मे…
निश्चिंतता के साथ आगे, घर के रास्ते पर बढ़ ली विशाखा ।
उजियाली रात मे सारी चीजें कितनी डरावनी दिखती है ,मन ही मन मे सोच रही थी। पता नही कहाँ से इतनी सारी आवाजें आती रहती हैं। झीन्गुर से लेकर बड़े बड़े जानवर सभी अपनी आवाजें निकालते रहते हैं ।
अचानक से उसने देखा! उसकी परछाई के साथ-साथ, एक परछाई और थी ,जो उसका साथ इस सफर मे दे रही थी ,लेकिन इतनी बड़ी परछाई किसकी होगी ?मेरे साथ तो कोई नही है और मै तो छोटी हूँ, मेरी परछाई तो ये रही ।
कुलिया के अँधेरे मे भी, उसको अपने साथ किसी और के होने का एहसास हो रहा था ।
धीरे से उसने अपने कानों को छुआ, गरम हो रहे थे ,अजीब सी आवाज कान मे आ रही थी ।
कितनी जल्दी घर पहुंचू, अभी तक तो सभी लोग परेशान हो गये होंगे ।
ज़रा सा घबरा गई थी वो! लेकिन मन मे ढाढ़स था कि, किसी ने साथ दिया उसका यहाँ तक। गालों को छुआ, आँसू भी बहे थे थोड़े से ,माँ की बड़ी जोर से याद आ रही थी उसे ।
तरह तरह की आवाजों के बीच मे से, माँ की धीमी सी आवाज सुनायी पड़ी। विशू..विशू ..विशूशूशू कहाँ हो तुम बेटा!
बड़ी धीमी सी आवाज मे उसने उत्तर दिया, यहाँ हूँ माँ! अपनी बंद होती हुई आँखों से उसने बगल मे देखा नही थी परछाई, उसके साथ अब ।
ऐसा लगा ,माँ के पास पहुँचाने के इरादे से ,साथ मे चल रही थी ।
कुलिया का रास्ता पार हो गया था ।टार्च लेकर खोजते हुए सभी लोग सामने खड़े थे, माँ सबसे आगे थीं। माँ ने अपनी बाहों को फैला दिया, निढाल हो कर विशू!! माँ की गोद मे समा गई ।
सुबह जब आँख खुली तो माँ को, अपने बगल मे सुबकते हुए पाया ।
सारा मुआयना हो चुका था विशू का ..
दादी की चाल मे गजब की फुर्ती थी ।ओंठ कुछ बुदबुदा रहे थे, कभी वो कमरे के अंदर आ रही थी, कभी कमरे से बाहर जा रही थी ।
पापा ने बड़े गर्व से विशू की तरफ देखा, बालों को सहलाया मेरा बहादुर बच्चा.. कोई मेरे बच्चे को कुछ नही बोलेगा ..पापा की बातें सुनकर खिलखिला पड़ी विशू..
अचानक से उसकी खिलखिलाहट मुस्कान मे बदल गई …किसकी थी वो परछाई ..कोई था मेरे साथ मेरे सफर में, या केवल मेरा भ्रम था ..लेकिन भ्रम तो नही हो सकता! मैने खुद देखा था।
क्योंकी खुद के ऊपर भरोसा था उसे..विशू को ध्यान से कुछ सोचते देख, एकबार फिर से दादी की तरफ देख कर विशू फिर से मुस्कुरा रही थी….
( समस्त चित्र internet के सौजन्य से )
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👍👍👍👍👍
Thanks 😊
You write really Awesome.
Thanks Gaurav 😊
🙂