समाज और कलम का हमेशा होता है साथ…..
इनका साथ हमेशा खींचता है अपनी तरफ ध्यान……
सामाजिक बदलाव हो या हो राजनीतिक बदलाव……
कलम हमेशा अपनी जिम्मेदारी निभाती है……
नन्ही सी कलम दिखती ज़रा सी अशक्त सी……
लेकिन उंगलियों के बीच में अपनी पकड़ को
बना कर रखती है……
मन और दिमाग के साथ सामंजस्य बिठाते हुए
अपनी बात को दमदार तरीके से कहती है……
कलम ने आज मनुष्य के मन की इच्छाओं का पकड़ लिया कोर……
कहने लगी मानव मन की इच्छाओं का होता नहीं है कोई छोर……
दिमाग का काम व्यक्ति के जीवन में
बड़ा उपयोगी होता है…….
समाज और परिवार के साथ साथ दिमाग
खुद के शरीर का भी सबसे बड़ा हितैषी होता है…….
मन की असीमित इच्छाओं की राह पर जो चला
अपने शरीर के साथ साथ समाज को भी
गर्त में गिरा आगे बढ़ चला……
स्वास्थय हो या हो समाज…..
चाहे हो विश्व उत्थान की बात…..
दिमाग ही तो राह दिखाता है…..
देखते ही देखते दिमाग के पीछे मन भागता
हुआ चला आता है…..
मन का प्रभावी होना इंसान को
उलझाता है……
विचारों के भंवर में डुबोता चला जाता है…..
असंतुलित भावनायें मानव मन की असीमित इच्छायें
सामाजिक असंतुलन पैदा करती हैं…..
समाज में व्यभिचार और अपराध को
पनपाती हैं……
कलम के साथ खुद जागना और दूसरों को जगाना
हमेशा से जमाने का दस्तूर रहा है……
किसी ने कलम को हाथ में लेकर समाज को जगाया…..
किसी ने राजा महाराजाओं के दरबार में
अपनी विलक्षण प्रतिभा को दिखाया……
अपनी वाणी के माध्यम से असंतुलित समाज को
संतुलित कर आगे बढ़ाया…..
पश्चिम के देशों की तुलना में हमारी सभ्यता और संस्कृति
अनुकरणीय इसीलिए मानी जाती है…..
क्योंकि सामाजिक ढांचे का अध्ययन करने पर…….
मन और दिमाग के संतुलन की बात हमेशा सामने आती है…….
(सभी चित्र इन्टरनेट से)
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A beautiful poem!!! Inspiring
Thanks 😊