बड़े बड़े महल हो ,कोठी हो या झोपड़ी…
हर घर मे होता है आईने का साम्राज्य….
आईने का आकार और प्रकार हमेशा आर्थिक स्तर के ऊपर निर्भर करता….इधर उधर,यहाँ वहाँ,हर जगह आईना दिख जाता ...
झील हो, नदी हो या तालाब …..ज़रा सा ठहरा हुआ सा जल भी आइने का ही तो काम कर जाता …..आते जाते हुए लोग आइने से अपने
मोह को छोड़ नही पाते …..ठिठक कर अपने को सँवारते फिर सधे हुए कदमों से अपनी राह पर बढ़ जाते ……
आईना बड़ा चमकीला होता है …..
स्वभाव से बड़ा हठीला होता है …..कितना जिद्दी होता है …..
कभी भी नही बदलता है …..पता नहीं क्यूँ इतना बोलता …..
सब्र के बिना ही शब्दों को उगलता …..पल भर का इंतजार भी मंजूर नही …..
इसमे इसके स्वभाव का कसूर नही ……अमीरी गरीबी ,खूबसूरती बदसूरती
सब कुछ जैसे का तैसा दिखाता …..
कभी भी कुछ नही झुठलाता …..आईना वही होता है
चेहरा हमेशा बदल जाता है ….इसी सच के साथ आईना
हौले से मुस्कुराता सा नज़र आता ……हमेशा भावों को दिखलाता ……
सोचते विचारते हुए चेहरे को हमेशा
प्रतिबिम्ब के बीच मे उलझाता …..खुद को प्रोत्साहित करने का भी
अच्छा जरिया होता है …..पता नही क्यूँ चुगली करने की
आदत को नही छोड़ पाता …..इंसानों के पास तो होता है
सुलझा हुआ सा दिमाग
जिसमे आते हैं सुलझे हुये विचार ……देख कर अपनी वास्तविकता
इंसान तो सँभलने की कोशिश
मे लग जाता है …..पशु पक्षियों को आईना दिखा कर देखो
तो उन्ही का प्रतिबिम्ब
उनको उलझाता जाता है …….आईने पर ही चोंच मारकर
खुद को घायल कर जाता है ……आईना आत्मविश्वास बढ़ाता हुआ भी नज़र आता है ….
सिमटी हुई रेत भी काम की होती है ……
कितना सही काम कर जाती है …..
आईना बन कर हर इंसान को
उसका वास्तविक चेहरा दिखा जाती है …..
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Kya khoob ….wahhh
Thanks😊