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(चित्र दैनिक जागरण के द्वारा )
ये कैसा अद्भुत एहसास है…
माँ और शिशु का अनोखा साथ है…
माँ के साथ खेलता हुआ शिशु
ऐसा लगता है,अपने तोतले शब्दों को
लेकर डोल रहा…..
माँ के सामने अपनी अलग ही
भाषा मे अपने भावों को उड़ेल रहा….
मै हूँ तेरा ही तो अंश…
बस इसीलिये तो करता हूँ तुझे तंग…
तुझमे मेरा और मुझमे तेरा
संसार समाता है…
इसीलिये तो माँ और बच्चे का रिश्ता
संसार मे अनोखा कहलाता है….
मेरे जगने पर तू जगती है…
मेरे सोने पर तू सोती है….
मेरे हर दर्द मेरे हर कष्ट को
अपनी असीमित सहन शक्ति से सहती है…
तेरे लिये मै तेरा प्यारा सा खिलौना….
तेरी जिंदगी का चाँदी और सोना….
मेरे चेहरे की खुशी को देखकर…
अपने सारे गमो को भुलाती है…
अब तू ऐसे ही तो माँ नही कहलाती है…
मेरा नाजुक एहसास तेरे चेहरे
को फूलों सा खिला देता है…..
मेरा करुण क्रंदन तेरे हृदय
को हिला देता है….
गिरता हूँ मै तो गिरती है तू…..
उठता हूँ मै तो उठती है तू….
तेरे हृदय के स्पंदन से मेरे हृदय के
तार जुड़े हैं…..
नौ महीने तेरी कोख मे ही तो
मेरे शरीर के अंग गढे और ढले हैं…..
मै तुझसे कैसे दूर हो सकता हूँ….
बस इसीलिये तो तेरी गोद मे आने
के लिए मचलता हूँ….
देखा है मैने तेरी आँखों मे
अपने लिए सपने हजार…..
कोशिश करूंगा कि पूरी कर सकूं
तेरे दिल की हर मुराद….
अपनी नन्ही नन्ही उन्गलियों से तुम्हें
हमेशा थाम कर रखूंगा…..
नन्हा शिशु हूँ लेकिन अपनी बातों से
कभी न मुकरुंगा….
तेरे हर स्पर्श मे अपने अक्स को
छुपा पाता हूं….
यह बात मै बड़े गर्व से कह जाता हूं….
माँ और बच्चे के बीच के प्यार और विश्वास
का अपना अलग ही स्थान होता है….
बड़ी मजबूत और अनोखी डोर से
यह रिश्ता बँधा होता है….
चेहरे की भाव भंगिमा और व्यहवार से
माँ की नजरें भाँप लेती हैं….
चाहे कितने भी पन्नों की हो किताब या काॅपी….
शब्दों के उतार या चढ़ाव से ही जाँच लेती है……
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मां। सिर्फ इतना सा शब्द ममता का एहसास करा जाता है, और दुनिया का हर एहसास फीका है, इसके सामने। बहुत सुंदर कोशिश की है आपने । लेकिन कुछ शब्दों में इसे परिभाषित करना तो शायद भगवान के बस में भी नहीं है।
बिल्कुल सही बात ,कोई भी माँ और उसकी ममता को शब्दों मे नही बाँध सकता ,लेकिन ममत्व के भाव को देख सकता है😊